बाहुबली नेता आनंद मोहन की रिहाई का ऐलान हो गया है। 16 साल जेल में गुजारने के बाद वे अब कभी भी बाहर आ सकते हैं। बस औपचारिकता भर बाकी रह गई है। आनंद मोहन जेल से बाहर आ सकें, इसके लिए सरकार ने 23 साल पुराने नियम में बदलाव किए हैं। ऐसे में चर्चा इस बात की भी है कि बिहार की सियासत से जाति है कि जाती नहीं।
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इनकी रिहाई पर सवाल होने लगे हैं कि आखिर महागठबंधन सरकार के लिए आनंद मोहन इतने क्यों जरूरी हैं? उनके बाहर आ जाने से बिहार की सियासत पर कितना असर पड़ेगा? महागठबंधन के लिए वे किस तरह मददगार साबित हो सकते हैं? एक्सपर्ट की मदद से हमने इन सवालों के जवाब देने की कोशिश की है। पढ़िए ये एक्सक्लूसिव रिपोर्ट….
महागठबंधन को मिलेगा सहानुभूति का साथ
आनंद मोहन की रिहाई की लड़ाई एक लंबे अर्से से चल रही है। कई संगठन इनकी रिहाई के लिए वर्षों से मुहिम चला रहे थे। इनके समर्थकों का मानना रहा है कि इस केस में जान-बूझ कर आनंद मोहन को फंसाया गया है। लंबे संघर्ष के बाद भी आनंद मोहन रिहा नहीं हो पा रहे थे। ऐसे में अब जब महागठबंधन की सरकार में इन्हें रिहा किया गया है तो लोगों की सहानुभूति भी महागठबंधन को मिलेगी। दबी जुबान में आनंद मोहन भी इशारा कर चुके हैं कि नीतीश कुमार ने उन्हें जेल से बाहर निकाला है वे उनकी मदद करेंगे।
राजपूत के साथ सवर्ण की अन्य जातियों में भी स्वीकार्यता
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं कि आनंद मोहन राजपूत के साथ भूमिहारों में भी मजबूत पैठ रखते हैं। इनकी स्वीकार्यर्ता सवर्ण के लगभग सभी जातियों में है। कई बार ये देखने को भी मिला है। भूमिहार और राजपूत का समन्वय बनाकर ही इन्होंने 1994 में लालू के गढ़ वैशाली में उन्हें मात दी थी। तब इन्होंने अपनी पत्नी लवली आनंद को वहां से निर्दलीय चुनाव जीता दिया था।
बीजेपी के सवर्ण वोट बैंक में सेंधमारी की तैयारी
नीतीश कुमार का बीजेपी से अलग होने के बाद पॉलिटिकल एक्सपर्ट का मानना है कि सवर्ण वोट बैंक का एक बड़ा तबका उनसे छिटक गया है। वरिष्ट पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं कि सवर्ण वर्ग अभी भी आरजेडी से दूर है। यही कारण है कि तेजस्वी यादव आरजेडी को A to Z की पार्टी बनाने की बात बार-बार करते हैं। ऐसे में महागठबंधन की इस कोशिश को आनंद मोहन कारगर साबित हो सकते हैं। प्रवीण बागी कहते हैं कि इनके सहारे महागठबंधन बीजेपी के अगड़ा वोट बैंक में सेंधमारी की तैयारी कर रही है।
आनंद मोहन बेहतर वक्ता के साथ यूथ के आइडल, इसका भी लाभ मिलेगा
68 साल के होने के बाद भी आज भी आनंद मोहन की गिनती बिहार के यूथ के आइडल के रूप में होती है। खास कर राजपूत वर्ग के युवा उनसे खासे प्रभावित हैं। ऐसे में महागठबंधन को युवाओं को साथ भी मिलेगा। आनंद मोहन की गिनती एक मुखर वक्ता के रूप में भी की जाती है। सक्रिय राजनीति में रहते हुए आनंद मोहन अपनी आकर्षक भाषण शैली के लिए अगड़ों में हमेशा लोकप्रिय रहे।
हालांकि, उनके भाषणों में तब लालू यादव ही निशाने पर रहते थे। तब लालू यादव को धमकाने में भी वो संकोच नहीं करते थे। अब हालात और तस्वीर दोनों अलग है। वे भाजपा पर हमलावर हैं। ऐसे में महागठबंधन को उम्मीद है कि आनंद मोहन के भाषण का जादू एक बार फिर राजपूतों और दूसरी सवर्ण जातियों के सिर चढ़ कर बोलेगा।
कोसी में वोटों के गणित को बदल सकते हैं आनंद मोहन
प्रवीण बागी कहते हैं कि आनंद मोहन राज्यभर में स्वीकार्य नेता हैं। इनका कुछ न कुछ असर सभी सीटों पर पड़ेगा। सबसे ज्यादा ध्रुवीकरण कोशी के इलाके में होगा। कोशी क्षेत्र में राजपूत के साथ दूसरी जातियों में भी फैन फॉलोइंग है। कोसी के अंतर्गत आने वाले जिले सहरसा, पूर्णिया, सुपौल, मधेपुरा के इलाके कई जातीय लड़ाईयों के गवाह बने। उन लड़ाईयों में आनंद मोहन सवर्णों के मसीहा के रूप में उभर कर सामने आए। वहां की सभी वर्गों में इनका सम्मान है। ऐसे में आनंद मोहन कोशी के गणित को बदल सकते हैं।
एक चिंता ये भी…
राजपूत एक साथ किसी के साथ नहीं गया है, दलितों में होगी नाराजगी
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर कहते हैं कि राजपूत वर्ग कभी भी एक साथ किसी दल के साथ नहीं गया है। वे हर दल को अपना वोट देते हैं। मतलब राजपूत का वोट बीजेपी के साथ-साथ जेडीयू और आरजेडी को भी जाता है। कोई भी दल इस पर अपना दावा नहीं कर सकते हैं। मणिकांत ठाकुर कहते हैं कि आनंद मोहन का एक सीमित दायरा रहा है। अगर ऐसा नहीं होता तो सालों तक उनका परिवार अपमानित नहीं होता है।
अभी चुनाव तक कई तस्वीर बदल सकती है। दलित वर्गों में महागठबंधन सरकार के इस फैसले से नाराजगी भी हो सकती है। जी कृष्णैया दलित वर्ग के एक बड़े अधिकारी थे। उनकी हत्या के मामले में आनंद मोहन दोषी करार दिए गए थे और सरकार उन्हें छोड़ दी।उनकी पत्नी सामने आकर सरकार से नाराजगी जता चुकी हैं।
लोकसभा की 10 सीटों पर राजपूत निर्णायक रोल में
बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 10 लोकसभा सीट ऐसे हैं जहां राजपूत निर्णायक रोल में हैं। यहां 3-4 लाख राजपूत वर्ग के वोटर्स हैं। जबकि 28 लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां इनकी आबादी 1 लाख से ज्यादा है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, बिहार की जनसंख्या 10.38 करोड़ थी। इसमें 82.69% आबादी हिंदू और 16.87% आबादी मुस्लिम समुदाय की थी। हिंदू आबादी में 17% सवर्ण, 51% ओबीसी, 15.7% अनुसूचित जाति और करीब 1 फीसदी अनुसूचित जनजाति है। मोटे-मोटे तौर पर यह कहा जाता है कि बिहार में 14.4% यादव समुदाय, कुशवाहा यानी कोइरी 6.4%, कुर्मी 4% हैं। सवर्णों में भूमिहार 4.7%, ब्राह्मण 5.7%, राजपूत 5.2% और कायस्थ 1.5% हैं।
इन लोकसभा सीटों पर राजपूत निर्णायक रोल में
1. महाराजगंज
2. औरंगाबाद
3. पूर्वी चंपारण
4. वैशाली
5. शिवहर
6.बक्सर
7. आरा
8. बांका