देव उथान एकादशी 25 नवम्बर 2020 बुधवार को को मनाई जाएगी । 26 नवम्बर को पारण किया जायेगा ! हिंदू पंचांग के अनुसार एक साल में कुल 24 एकादशी पड़ती हैं, जबकि एक माह में 2 एकादशी तिथियां होती हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहते हैं। मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए सो जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं । दरअसल आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी से कार्तिक महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी तक भगवान विष्णु योग निद्रा में रहते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन चतुर्मास का अंत हो जाता है और शादी-विवाह के काज शुरू हो जाते हैं ! इन चार महीनों के दौरान ही दीवाली मनाई जाती है ! पाताल में रहते हैं भगवान विष्णु…
वामन पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी थी । भगवान ने पहले पग में पूरी पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया । अगले पग में स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरा पग बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर रखने को कहा । इस तरह दान से प्रसन्न होकर भगवान ने बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया और वर मांगने को कहा ।
बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में निवास करें। तब भगवान ने बलि की भक्ति देखते हुए चार महीने तक उसके महल में रहने का वरदान दिया । धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधिनी एकादशी तक पाताल में बलि के महल में निवास करते हैं ।
इन महीनों में भगवान विष्णु के बिना ही मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है, लेकिन देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु को जगाने के बाद देवी देवताओं, भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करके देव दीवाली मनाते हैं । देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से पूरे परिवार पर भगवान की विशेष कृपा बनी रहती है । इसके साथ ही मां लक्ष्मी घर पर धन सम्पदा और वैभव की वर्षा करती हैं।
देवोत्थान एकादशी व्रत और पूजा विधि…
प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन और उनसे जागने का आह्वान किया जाता है। इस दिन होने वाले धार्मिक कर्म इस प्रकार हैं-
इस दिन प्रातःकाल उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए । घर की सफाई के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाना चाहिए।
एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल,मिठाई,बेर,सिंघाड़े,ऋतुफल और गन्ना उस स्थान पर रखकर उसे डलिया से ढांक देना चाहिए ।
इस दिन रात्रि में घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाने चाहिए । रात्रि के समय परिवार के सभी सदस्य को भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवताओं का पूजन करना चाहिए। इसके बाद भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर उठाना चाहिए और ये वाक्य दोहराना चाहिए- उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाये कार्तिक मास

ऐसे करें व्रत-पूजन :- देवउठनी एकादशी के दिन व्रत करने वाली महिलाएं प्रातःकाल में स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन में चौक बनाएं । इसके बाद भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करें ।
फिर दिन की तेज धूप में विष्णु के चरणों को ढंक दें ।
देवउठनी एकादशी को रात्रि के समय सुभाषित स्त्रोत पाठ, भगवत कथा और पुराणादि का श्रवण और भजन आदि का गायन करें ।
घंटा, शंख, मृदंग, नगाड़े और वीणा बजाएं ।

विविध प्रकार के खेल-कूद, लीला और नाच आदि के साथ इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान को जगाएं : –
उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये ।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥’
‘उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव ।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥’
‘शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव ।’
इसके बाद विधिवत पूजा करें।
पूजन के लिए भगवान का मन्दिर अथवा सिंहासन को विभिन्न प्रकार के लता पत्र, फल, पुष्प और वंदनबार आदि से सजाएं। आंगन में देवोत्थान का चित्र बनाएं, तत्पश्चात फल, पकवान, सिंघाड़े, गन्ने आदि चढ़ाकर डलिया से ढंक दें तथा दीपक जलाएं ।
विष्णु पूजा या पंचदेव पूजा विधान के अनुसार श्रद्धापूर्वक पूजन तथा दीपक, कपूर आदि से आरती करें ।
इसके बाद इस मंत्र से पुष्पांजलि अर्पित करें : –
यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन।
तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्तिदेवाः॥’
इसके बाद इस मंत्र से प्रार्थना करें : –
‘इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।
त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थ शेषशायिना॥’
इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो ।
न्यूनं सम्पूर्णतां यातु त्वत्प्रसादाज्जनार्दन॥’

साथ ही प्रह्लाद, नारद, पाराशर, पुण्डरीक, व्यास, अम्बरीष,शुक, शौनक और भीष्मादि भक्तों का स्मरण करके चरणामृत, पंचामृत व प्रसाद वितरित करें। तत्पश्चात एक रथ में भगवान को विराजमान कर स्वयं उसे खींचें तथा नगर, ग्राम या गलियों में भ्रमण कराएं ! शास्त्रानुसार जिस समय वामन भगवान तीन पद भूमि लेकर विदा हुए थे, उस समय दैत्यराज बलि ने वामनजी को रथ में विराजमान कर स्वयं उसे चलाया था । ऐसा करने से ‘समुत्थिते ततो विष्णौ क्रियाः सर्वाः प्रवर्तयेत्’ के अनुसार भगवान विष्णु योग निद्रा को त्याग कर सभी प्रकार की क्रिया करने में प्रवृत्त हो जाते हैं । अंत में कथा श्रवण कर प्रसाद का वितरण करें ।
देवउठनी एकादशी का महत्व
प्रबोधिनी एकादशी को पापमुक्त एकादशी के रूप में भी जाना जाता है ! धार्मिक मान्यताओं के अनुसार राजसूय यज्ञ करने से भक्तों को जिस पुण्य की प्राप्ति होती है, उससे भी अधिक फल इस दिन व्रत करने पर मिलता है. भक्त ऐसा मानते हैं कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा-अराधना करने से मोक्ष को प्राप्त करते हैं और मृत्युोपरांत विष्णु लोक की प्राप्ति होती है !

तुलसी विवाह का आयोजन
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है । तुलसी के वृक्ष और शालिग्राम की यह शादी सामान्य विवाह की तरह पूरे धूमधाम से की जाती है। चूंकि तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं इसलिए देवता जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं । तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आह्वान करना । शास्त्रों में कहा गया है की
कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि कार्तिक पूर्णिमा तक देसी घी के दीपक जलाने से पापों से मुक्ति मिलती है। देव प्रबोधिनी एकादशी पर योग निद्रा से भगवान श्री हरि विष्णु जागृत होंगे । सभी तिथियों का किसी न किसी देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना से सीधा संबंध माना गया है । भारतीय सनातन परंपरा के हिंदू धर्म ग्रंथों में हर माह के विशिष्ट अतिथि की पहचान मानी गई है । किसी विशेष पर्व पर पूजा अर्चना करके मनोरथ की पूर्ति की जाती है । इसी क्रम में कार्तिक माह की एकादशी तिथि की विशेष महिमा मानी गई है । कार्तिक मास का यह प्रमुख पर्व है । कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देव प्रबोधिनी हरि प्रबोधिनी, देव उठनी एकादशी के रूप में भी इस दिन की मान्यता है । देव उठनी एकादशी का व्रत महिलाओं के लिए समान रूप से फलदाई माना गया है । अपने जीवन में मन वचन कर्म से पूर्ण रूप विशेष फलदाई रहता है । भगवान् श्री हरी विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन क्षीर सागर में योग निद्रा हेतु प्रस्थान करते हैं । कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु योग निद्रा से जागृत होते हैं । भगवान श्री विष्णु के जागृत होते ही समस्त कार्य शुभ मुहूर्त में प्रारंभ हो जाते हैं । इस बार 25 नवंबर को बुधवार को मनाया जाएगा ! एकादशी का व्रत रखा जाएगा। इस दिन उपवास रखकर भगवान श्री हरि विष्णु की विशेष पूजा करने का विधान है। व्रत करता को प्रातः काल अपने आराध्य देवी देवता की पूजा अर्चना के पश्चात एवं भगवान श्री विष्णु की पूजा अर्चना का संकल्प लेना चाहिए । श्री विष्णु सहस्त्रनाम, श्री पुरुषसूक्त, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जप करना चाहिए । आज ही के दिन का मंडप बनाकर शालिग्राम जी के साथ तुलसी जी का विवाह रचाया जाता है ।

मान्यता के अनुसार देव प्रबोधिनी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तुलसी जी की रीत रिवाज विधान से पूजा अर्चना का विशेष महत्व है । इस दिन भगवान श्री गणपति जी की भी पूजा की जाती है । दिन में फलाहार ग्रहण करना चाहिए। अन्न ग्रहण का निषेध माना गया है । एकादशी तिथि भगवान श्री विष्णु की श्रद्धा भक्ति भाव के साथ शुभ फलदाई माना गया है। आज के दिन स्नान ध्यान करके उपयोगी वस्तुएं और दान देने की मान्यता है । व्रत रखकर भगवान श्री विष्णु की आराधना करके आशीर्वाद प्राप्त करते और समस्त अभीष्ट को प्राप्त करते है !ऐसी मान्यता है कि तुलसी विवाह करवाने से पुण्यों की प्राप्ति होती है । ऐसा माना जाता है कि जिन लोगों की कन्याएं नहीं होती हैं और वह कन्या दान का पुण्य कमाना चाहते हैं उन्हें देवी तुलसी का विवाह तुलसी जी से करने पर कन्या दान का पुण्य प्राप्त होता है।
आध्यामिक गुरु श्री कमला पति त्रिपाठी “प्रमोद जी”